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कृष्ण वृहस्पति की कविताएं

गूंगे आदमी
उनके पास जोर था
मेरे पास कलम थी
वे जोर लगा कर थक गए
मैं लिखने से नहीं रूका ।

मेरे पास खेत थे
उनके पास लठैत
मैंने खेतों में आदमी उगाए
वे उगे तो उन्होंने
सरकारी लगान के नाम पर
उनकी काट ली जुबानें !

मेरे वे गूंगे आदमी
बिके नहीं फिर
बाजार में टके सेर ही ।

अनुवाद : नीरज दइया

(भाई कृष्ण वृहस्पति को मैं राजस्थानी में मेरे समकालीन कवियों में सर्वाधिक पसंद करता हूं । वे अपना पहला राजस्थानी कविता संग्रह इसी वर्ष प्रकाशित करेंगे, ऐसा मेरे कवि-मित्र का कहना है ।) 

1 comment:

  1. कलम भी हार जाए.........

    मेहनत भी.....

    बाकी फिर....टका सा ही रह जाता है....शायद....!

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