उनके पास जोर था
मेरे पास कलम थी
वे जोर लगा कर थक गए
मैं लिखने से नहीं रूका ।
मेरे पास खेत थे
उनके पास लठैत
मैंने खेतों में आदमी उगाए
वे उगे तो उन्होंने
सरकारी लगान के नाम पर
उनकी काट ली जुबानें !
मेरे वे गूंगे आदमी
बिके नहीं फिर
बाजार में टके सेर ही ।
अनुवाद : नीरज दइया
(भाई कृष्ण वृहस्पति को मैं राजस्थानी में मेरे समकालीन कवियों में सर्वाधिक पसंद करता हूं । वे अपना पहला राजस्थानी कविता संग्रह इसी वर्ष प्रकाशित करेंगे, ऐसा मेरे कवि-मित्र का कहना है ।)
कलम भी हार जाए.........
ReplyDeleteमेहनत भी.....
बाकी फिर....टका सा ही रह जाता है....शायद....!