भरोसेमंद अक्षर
मैं अहसनमंद हूं
मनुष्यता के उन लाडले सपूतों का
जिनकी अद्वितीय मेधा
और अथक प्रयासों द्वारा
अमानवी यातनाओं से
गुजरते हुए भी
हम जोड़ सके हैं कुछ
भसोसेमंद अक्षर
जो हमारी भटकी हुई उम्मीदों के साथ
जुड़ते ही
खोल सकते हैं नए रास्ते
एक जीवंत अहसास
और असरदार
किसी धारदार हथियार की भांति
वे चीर सकते है अंधेरा
मुक्ति दिला सकते हैं
तहखानों में कैद उस उजियाले को
जो दे सकता है आंखों को नई दृष्टि
सुंदर चेहरों को
एक अटूट आत्मविश्वास-
जिस के द्वारा
उस ’दयानिधान’ की
नीयत पहचानी जा सकती है ।
***
बच्चे के सवाल
कठिन और अछूते सवालों में
अनजाने हाथ डालना
बच्चे की आदत होती है-
पहले वह अनुमान नहीं कर पाता
कठिनाई का हल
और थाह लेने
उतरता जाता है
अंधेरी बावड़ी की सीढ़ियां !
बच्चे के उन बेबाक सवालों का
वह क्या उत्तर दे,
जो एकाएक
हलक से बाहर आकर खड़े हो जाते हैं सामने
और हालात को समझाने के लिए
जद्दोजहद करते हैं-
-पिताजी !
हम क्यों देखें किसी के सामने,
क्यों चाहिए हमें किसी की हमदर्दी -
क्यों खड़े होता है राजमार्ग के इर्द-गिर्द
क्यों बोलें किसी की अनचाही जय-जयकार
और क्यों चुपचाप बैठना पड़ता है
हमें हमारी इच्छाओं के विरुद्ध ?
कैसी अनचीन्ही दुविधा है
एक तरफ़ बच्चे की भोली इच्छाएं -
सयानी शंकाएं,
अनेक कोमल सपने
और उमगती कच्ची नींद,
और दूसरी तरफ़
यह दारुण परवशता की पीड़ !
उसकी आंखों के आगे घूमती है
बच्चे की इच्छाएं
और सवालों से जूझता है उसका मन
आख़िरकार कांपते पैरों
वह चल पड़ता हैं अपनेआप उसी मार्ग
जो एक अन्तहीन जंगल में खो जाता है !
सिर्फ कानों में गूंजती रहती है
बच्चे की कांपती आवाज-
-आप ऐसे अनमने किधर जा रहें हैं पिताजी ।
दोपहर हमें शहर जाना है-
मुझे आजादी की परेड में हिस्सा लेना है
आप ऐसे बिना कुछ कहे कहां जा रहे हैं पिताजी ?
***
अनुवाद : नीरज दइया
नंद भारद्वाज (1 अगस्त, 1948) राजस्थानी के प्रख्यात कवि, कथाकार, उपन्यासकार और आलोचक। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत । राजस्थानी में "अंधार पख" नामक कविता संग्रह बेहद चर्चित, आलोचना की "दौर अर दायरो" अतिमहत्त्वपूर्ण पुस्तक के अतिरिक्त कहानी संग्रह व उपन्यास प्रकाशित । प्रतिनिधि राजस्थानी कहानियों का संकलन "तीन बीसी पार" एनबीटी से प्रकाशित । हिंदी में भी समानान्तर लेखन। अनेक पुस्तकें तथा पुरस्कार।