जल विरह
जब गिरती है बूंद
पृथ्वी तल
छम-छम नाचता है जल ।
हर्षित होती है बावड़ी
बरसने की आशा
जी उठता है जल
गर ना बरसे
तो सूक मरे
विरह ।
***
पिता आप
पिता आप
आप ही मां जाए भाई
आप ही मेरी भाभी के घर-
बालक ।
आप स्थिर
युगों-युगों से मेरे पिता
दूध चूंघते मेरी भाभी के स्तनों !
***
पति आप
पति आप
मेरे ही गर्भ पलते ।
जन्म लेते हैं ।
मुस्कुराते हो
करते मजाक
कह कर- मां !
***
मोर मुकुट आपका
सोनलिया रेत का यह
तिकोना धोरा
धोरे के शीर्ष नाचता मोर ।
मोर मुकुट आपका
मेरा खेत ।
***
स्मृति
सोनलिया रेत
मांडती है हवा
लहरें
नीर की ।
छोटी टेकड़ियां
धारै मछली रूप
मरुधर की स्मृति में है
सागर ।
***
वृक्ष
वृक्ष सौंपता है पत्ते
सृजित होते हैं-
नव पल्लव ।
मैं सौंपती हूं देह
पाती हूं नवीन देह-धर !
***
अनु. नीरज दइया
संतोष मायामोहन का जन्म 6 जून, 1974 को हुआ, आपके दो कविता-संग्रह राजस्थानी प्रकाशित हुए हैं- सिमरण, जळ विरह । वर्ष 2003 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार “सिमरण” काव्य संग्रह के लिए प्राप्त ।
really thought provoking!!!! my compliments to Neeraj ji also without whose efforts i could not read these poems. giving a common platform is a great deed indeed. congrats both of you ....
ReplyDeleteJK Soni from Mussoorie