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श्यासुंदर भारती की कविताएं

खिलौनों की दुकान पर बच्चा
रोते बच्चे को
गोद में लिए
वह खिलौनों की दुकान में घुसा

अ ले ले
लो मत
यह देथ हाथी
यह घोड़ा
यह बंदर…
……अ ले ले लो मत ।

उसने बच्चे को
नीचे उतार दिया
बच्चा कदम-कदम बढ़ाता चला
इतने खिलौनों में
बच्चे को एक चीज पसंद आई
उसने जाकर सीधे बंदूक उठाई ।
***

फर्क
दुकानदार
आज भी उधार तोलता है
बेचारा कुछ नहीं बोलता है
उधार ही कितना
फर्क सिर्फ इतना
कि सौदा लेने
पहले बापू जाता था
अब बेटी जाती है ।
***

शर्म
उस दिन
तोलते वक्त
जब दुकानदार ने
मेरी नजरें बचा कर
तराजू के डंडी मारी ।

मेरे मित्र !
जब-
मेरे मुंह पर नहीं
मेरे पीछे
मेरी बुराई बखानी ।

और उस दिन
रिशवत लेने की खातिर
जब उस ने
हाथ लम्बा किया
टेबल के नीचे से
उस वक्त
लगा मुझे कि
लोगों की आंखों में
अभी शर्म बाकी है ।
***

अनुवाद : नीरज दइया


कवि श्यामसुंदर भारती राजस्थानी के समर्थ कवि है जिनकी छंद के साथ नितांत आधुनिक और उत्तर आधुनिक काव्य की मर्मज्ञया "मुजरो करै आकास" नामक राजस्थानी कविता संग्रह से पहचानी जा सकती है । 

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