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प्रमोद कुमार शर्मा की कविताएं

आईने के सामने औरत
क्या सोचती होगी वह
जब होती है अकेली !

मुग्ध होती है अपनी सुन्दरता पर
या करती है याद दुनिया की बदसूरती !

कुछ न कुछ तो सोचती होगी
आईने के सामने औरत !

छोटी सी बात
भाई कहता है
मकान इस नक्शे जैसा बनवाएंगे ।
बहन सोचती है :
कि शादी में उसकी
किस डिजाइन के होगे गहने ।
मां बडबडाती है-
" भले नहीं है पडोसी ।"
पिता उलझे रहते हैं हर समय
इन्कम टैक्स के आंकडों में
घर का नैकर
हंसता है हम सब पर
" ये लोग जिंदा क्यों है ?"
***

आत्म हत्या
कभी-कभी
आता है विचार
कि आज किसी को
भर कर बाहों में
मर जाएं ।
तो-
कभी-कभी लगता है
इस की जरूरत ही क्या है ?
***

अकथ कथा
जहां उगना था रूंख
वहां नहीं थी जमीन !
और जहां थी जमीन
वहां तक नहीं पहुंचा था बीज !
बस ! यही खत्म होती है
यह अकथा कथा
एक पेड के उगने की ।
***

यह समय
यह भी कोई समय है ?
शब्द उतरने से करने लगे है मना
और आत्मा सूख कर
समुद्र से बन गई है बूंद
देश सो गया है
देखते देखते टेलीविजन
कौन पढ़ेगा कविता ?
यह भी कोई समय है कविता पढ़ने का ?
***

प्यास
यह कैसी प्यास
जो बुझाए बुझती ही नहीं !
जितना पीता हूं
उतनी ही बढ़ती जाती है !
कभी-कभी तो हद है-
मेरे कंधों पर यह चढ़ जाती है !
और मेरे लिए
उदासी के
गहरे क्षण गढ़ जाती है ।
***

सुनता रहा कोई
धड़ता दिल
कभी नहीं जलता
जलता है पत्थर दिल
टकराने पर दूसरे से
ठीक रहा-
अकेला ही ठीक
धड़कता तो रहा मेरा दिल
सुनता रहा कोई !
***
अनुवाद : नीरज दइया

प्रमोद कुमार शर्मा राजस्थानी और हिन्दी में समान रूप से लिखते हैं । राजस्थानी में " सावळ-कावळ " कथा संग्रह अपनी नवीन भाषा-शैली और कथ्य के संरचनात्म कैशल में आधुनिक शिल्पगत प्रयोगओं के कारण बेहद चर्चित रहा । वर्ष 2005 में राजस्थानी कविता संग्रह " बोली तूं सुरतां " के अतिरिक्त आपकी हिन्दी में भी पांच-सात किताबें कविता, कहानी व उपन्यास विधा की प्रकाशित हुई हैं ।

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