आपने कभी सुनी है-
रेत की पुकार
प्यासी रेत की
पानी जहां
एक सलोना सपना है
हारी- थकी आंखों का ।
एक -एक बूंद के लिए तरसती
पपड़ाए होंठों पर जीभ फिराती
रेत का पानी से कितना प्यार होता है
आप शायद नहीं जानते ।
आकाश को तकती आंखों में
मेह से कितना नेह होता है
यह खेजड़े और फोगले जानते हैं
या फिर जानता है रोहिड़ा
जो काली-पीली आंधी में भी
मुस्कुराता-मुस्कुराता गीत गा देता है
रेत की संवेदनशीलता के ।
रेत- सिर्फ रेत नहीं
यहां भी आप को
रंगीन कल्पनाएं मिलेगी ;
जिस दिन यह रेत
अंगड़ाई लेगी
इतिहास बदल जाएगा
आप देखते रहेंगे
यहां भी
नई-नई कलियां खिलेगी ।
***
मेरा बसंत
आपके आता होगा बसंत
फागुन में ।
यहां तो भाई आषाढ़ में
यदि आसमान फूट जाए
और जम जाए बाजरे की जड़,
फैल जाए
काकड़िये-मतीरों की बेलें
मूंग-मोठ धरती को ढक लें
तो सावन-भादवे से
सभी ऋतुएं नीचे है ।
यह थार है ! थार !!
यहां सारी ऋतुएं अलग है
दुनिया से ।
यहां बचपन से सीधा
बुढ़ापा आता है ;
जवानी का पन्ना
ना जाने कौन फाड़ जाता है ?
जिन्दगी एक एक सांस से
धक्का-मुक्की करती है
रात के सन्नाटे में
रेत भी गीत गाती सुनाई दे जाएगी
कुदरत भी यहां
नित-नए खेल रचती है ।
रेत के इस तपते समंदर में
धोरों की ढलान पर
हठ जोगी-सा
एक टांग पर खड़ा है खेजड़ा
गहरी साधना में व्यस्थ है,
और तपती दोपहरी में बोलती कमेड़ी
किसी भक्त-सी
रामनामी घुन में मस्त है ।
यहां प्रत्येक जीव सांस-सांस में
जिंदगी से जंग करता है
वह चित्रण आपको यहां कहां मिलेंगे,
जहां फागुन
फूल-फूल में नए-नए रंग भरता है ?
***
अनुवाद : नीरज दइया
डॉ मंगत बादल राजस्थानी साहित्य के साथ साथ हिन्दी साहित्य में भी जाना-पहचाना नाम है । राजस्थानी में 'रेत री पुकार’, 'दसमेस’ चर्चित कृतियां हैं । हिंदी में भी कई पुस्तकें प्रकाशित । राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार तथा प्रबंध काव्य ‘मीरां’ के लिए वर्ष 2010 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार ।
डेली न्यूज, जयपुर रविवार, 26 दिसम्बर, 2010
yahan bachpan se seedha budhapa aata hai ...Adbhut ..Ret Ki Pukar ke baad ..essa basant ..!! Bhot Khub Badal Sahab ..or Dhanywad Neeraj Ji ..!!
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