चूक
चूक
मनुष्य से तो होती ही है
देवता से नहीं होती क्या?
ठीक से देखें-
राम आरोपित
कृष्ण शापित
इंद्र कलंकित
भीष्म भ्रमित...
बता सूची में
कितने नाम शामिल करूं
किस से नहीं होती
चूक?
पुरुषोत्तम
कहीं
अहिल्या
ठगी जाती
समर्थ को
दोष नहीं।
कहीं
द्रोपदी का
हो चीर-हरण
समर्थ बलहीन
नजर आते हैं।
नित्य
परखा जाता सत
गजब परंपरा चलाई
वाह रे!
पुरुषोत्तम!!
पड़ाव दर पड़ाव
पड़ाव दर पड़ाव
मंजिल का पार कहां?
पार के पार
चलना-फिरना-घिरना
फिर अपार
पार का पार
कैसे पाएं पार!
अब तो
अपनी राग रचते
संभव है हो जाएं पार।
वे औरतें
क्या कहता है
यह पसरा-छितराया
उखाड़ा जा चुका है जो रुंख
अब कहाँ है वे
पहाड़ी औरतें
जिन्होंने लिपट कर
कटने नहीं दिए रूंख!
००००
अनुवाद- नीरज दइया
श्रीलाल जोशी : 15 अगस्त, 1955 को
जन्में श्रीलाल जोशी राजस्थानी और हिंदी में पिछले चार दशकों से समान रूप
से सृजनरत हैं। ‘मरूदीप’ और ‘मरूनायक’ के संपादक और अपने भाषिक स्वरूप को
लेकर निरंतर चर्चा में रहे। राजस्थानी में ‘ना-थूब’ कहानी संग्रह एवं ‘आखर
री रूह’ कविता संग्रह प्रकाशित। हिंदी में मौलिक एवं संपादित पांच कृतियां
प्रकाशित। अनेक मान-सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित। स्थाई संपर्क- रतन
भवन, नत्थाणियों की पोल, बारह गवाड़ चौक, बीकानेर- 334005