आदमियों के आंकड़े
जब मेरे दादा गुजरे
अर्थी के पीछे
सैंकड़ों आदमी थे ।
बापू गुजरे
जब बीसेक ।
हो सकता है
जब मैं मरूंगा
चार ही नहीं हो ।
अब आप ही बताएं
आदमी घटे या बढ़े ?
***
कविता
उनकी नजरों में
कविता लिखना फैशन है
तभी तो पड़ौसी ‘गिरजा’
लिख-लिख कर कविताएं
उड़ा देता है जैसे- पतंग
मैंने कितनी ही बार
लिखनी चाही कविता
पर लिखी नहीं गई ।
आज
जब कव्वै ने
ऊंट की टाटर पर
मारी चोंच
तो न मालूम
कहां से आ कर
पसर गई
कविता
टाटर पर !
***
अनुवाद : नीरज दइया
(साहित्य अकादेमी से सम्मानित डॉ भरत ओला मूलतः गद्यकार हैं, किंतु राजस्थानी में कुछ कविताएं भी लिखी है । हिंदी में आपका एक कविता संग्रह तथा राजस्थानी में दो कहानी संग्रह व एक उपन्यास प्रकाशित हुए हैं । )
Bhot Khub ..!!
ReplyDeleteबहुत ख़ुब
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