Pages

दुष्यंत की कविताएं

लैटर बाक्स
मौन है लाल डिब्बा
और मौन है
मेरे दरवाजे के बाहर टंगा-
लैटर बाक्स,
अब नहीं होता इंतजार
बेचैनी से पत्रों का !
साक्षी रहा है यह
शुभ-अशुभ घटनाओं का
मातम और खुशी का
जन्म और मृत्यु का
मोबाइल और ई-मेल ने छीन लिए हैं-
अंतस पर उतरते आखर
साइबर-कैफे ने छीन ली है-
रौनक डाकघरों की
अब उंधते हैं डकिए
और लगता है-
ले रहे है आबासियां लेटर-बाक्स
अक्षर है अब अकाल पर
या गूंज रहे हैं-
आईंसटीन के सूत्र-
‘E=mc2’ के अनुसार
शताब्दियों के लिए हमारे इर्द-गिर्द ।
**

निरंतर
मैं न इस तरफ हूं
और न उस तरफ
बीच में हूं मैं
मगर यह मेरा कोई स्थाई पता नहीं ।
जिंदगी तो एक मछली जैसी है
जिसे में बिना पानी के
है जीवन भर की छटपटाहट ।
मैं डर की अंधेरी गिलयों में
सहलाता हूं- मां की आंखों के सपने ।

मुझे स्वयं खोजना है-
एक किनारा ।
तटस्थ नहीं रहूंगा मैं
है वही समय
वही है वृक्ष
वही है आंगन
वही है सावन और बरसात
है उसी हवा के झौंके
और मैं इन सब के बीच
हूं निरंतर स्वयं को ढूंढ़ता !
**

कवि हो कर
चाहता हूं मैं
मिल जाए
धरती-आकाश,
पानी-आग
और
सच-झूठ ।
हिंदू-मुसलमान में
हो जाए रोटी-बेटी का रिस्ता ।
मिल जाए-
धर्म-विधर्म
परंतु यह है-
सिर्फ एक विचार
और दसरी बात
यह है- एक कवि का विचार
जो समय का साक्षी अवश्य होता है
परंतु समय की धार को
परिवर्तित कर नहीं सकता ।
मैं कवि हो कर चाहता हूं-
कि हो जाए ऐसा
मैं कवि हो कर चाहता हूं-
कि कोई कवि न हो जाए !
**

मेरी सब से उदास कविता
देह का टूटना
टूटना वृक्ष का
या फिर टूटना कुछ इमारतों का
सच में बहुत अर्थ रखता है

पर सपने के टूटने
और आशाओं के टूटने से भी
बुरा है टूटना
किसी मनुष्य का ।
मनुष्यता के अतीत का
सबसे दर्दनाक पृष्ठ है यह
उदासी का सब से बड़ा कारण ।
और ठीक यहीं से जन्मती है-
मेरी सब से उदास कविता ।
**
अनु. नीरज दइया

दुष्यंत का जन्म 1977 में कसरीसिंहपुर (श्रीगंगानगर) में हुआ । राजस्थानी में "उठै है रेतराग" कविता संग्रह प्रकाशित । संपर्क : 43/17/5, स्वर्णपथ, मानसरोवर, जयपुर (राजस्थान) 

1 comment:

  1. मोबाइल और ई-मेल ने छीन लिए हैं-
    अंतस पर उतरते आखर
    साइबर-कैफे ने छीन ली है-
    रौनक डाकघरों की
    अब उंधते हैं डकिए
    और लगता है-
    ले रहे है आबासियां लेटर-बाक्स
    अक्षर है अब अकाल पर
    या गूंज रहे हैं-
    आईंसटीन के सूत्र-
    ‘E=mc2’ के अनुसार
    शताब्दियों के लिए हमारे इर्द-गिर्द ।
    ___________________________



    यह है- एक कवि का विचार
    जो समय का साक्षी अवश्य होता है
    परंतु समय की धार को
    परिवर्तित कर नहीं सकता ।
    मैं कवि हो कर चाहता हूं-
    कि हो जाए ऐसा
    मैं कवि हो कर चाहता हूं-
    कि कोई कवि न हो जाए !

    ___________________________


    हमारे समय को व्यक्त करती कविताएँ

    ReplyDelete