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निशांत की कविताएं

कुदरत की पड़
अथाह मेह बाद
दूर आकाश में
ऊंट-घोड़ै-से
खड़े है बादल
जैसे टंगी हो-

पाबू जी की पड़
और आगै खड़ै है
ऊंचे-ऊंचे दरखत
जैसे- भोपा-भोपी
उसे बांच रहे।
***

औरतें
इतनी भाग-दौड़ में भी
याद रख लेती है वे
गीत

जमाने का इतना जहर
पी कर भी वे
उबार लाती हैं
कंठों में
इतना मिठास
सीधी-सादी औरतें।
***

सौरम की बात
बात-बेशक
रोटी की सौरम की कीजिए
परंतु पहली पहली बिरखा की
उस सौरम को क्यों भूलते हो
जिस से ही
आस जगती
रोटी की।
***

कुदरत के सामने
पाड़ोसी गिरा देता है
गली में थोड़ा-बहुत पानी
तो हम उतर आते हैं-
मारने-मरने को

पर मेह के पानी को तो
जूतियां खोल कर
लांघ जाते है!
***       

युग धर्म
बाते करते हो
युग धर्म की

पर कब था
पूरा सतजुग ?
और अब कहां है ?
सौ प्रतिशत कलयुग

झूठ-सच की लड़ाई तो
धुर से चालती आई है
और चलती ही रहेगी।
***

सग्गा
वे कहने को
सग्गातो अवश्य कहे जाते हैं
पर जरा भी नहीं समझते
सग्गै का संकट!

छुछक, भात,
ओढावणी और दहेज
लेते समय
कभी भी नहीं सोचते
कि सग्गा
डूब तो नहीं गया है
कर्ज जे कीचड़ में!
***

धुंध के बाद सूरज
पूरी सर्दी
धुंध ही धुंध

मन बहुत दुखी रहा
पर इतना संतोष भी हुआ
कि तरसना नहीं पड़ा
धूप में बैठने के लिए।

दस दिनों की
धुंध के बाद
आज आप निकले हैं
तो लागा है-
बसंत
आ गया है।
***


अनुवाद : नीरज दइया

कवि निशांत का जन्म 1949 में हुआ, वे पीलीबंगा श्रीगंगानगर में रहते हैं । आप लम्बे समय से राजस्थानी और हिंदी में कविताएं और कहानियां लिखते रहे हैं। पत्र-पत्रिकाओं में रचानाएं प्रकाशित होती रहती है। वर्ष 2002 में बोधि प्रकाशन, जयपुर से धंवर पछै सूरजराजस्थानी कविता संग्रह प्रकाशित ।

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