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प्रेमजी प्रेम की कविताएं


चित्र
हर किसी की
क्या मजाल
जो पढ़ ले
गा ले ।

संस्कार और सीख
जिसे मिलें होतें हैं
वे ही पढ़ सकते हैं-
मेरे बोल
गा सकते हैं मेरे अक्षर

इबारत बांचने से पहले
संस्कार से जुड़ो ।
फड पर मंडा
एक चित्र हूं मैं ।
***

बांसुरी
बोल बांसुरी बोल
तुम्हारे बोलने से ही
लोग जानते हैं
पहचानते हैं
कि मैं कौन हूं !

मेरे मरणोपरांत भी
इसी तरह बोलती रहना
उतारती रहना
लोगों के मनों में
मेरी बात ।

लोगों का तो स्वभाव है-
भूलना ।

वे भूल नहीं जाए मेरी बात
तुम बोलती रहना
युगों युगान्तर तक
जिस से कि सभी लोग जान जाए
कि किसी के मरने से
मरती नहीं बात ।

जान जाए-
कि ब्रह्म हैं शब्द !
***

आंधी
आने वाली है एक आंधी
सावधान !
हो करचेत
करें मजबूत घोसलों की पकड़
पेडों के हिलने की सोचें

जब-जब भी आई है आंधी
पेडों का कुछ नहीं बिगड़ा
बार-बार आती है आंधी
उसका बैर है घोसलों से
पेड तो वे ही उख़डते है
जिनकी होती है पकड़ ढीली

पेड़ों और घोसलों की बात छोड़े
असली बात तो है-
मजबूत पकड़ की
जिसकी ढीली है पकड़
वह टूटेगा ही ।
***

पाप
पाप करना पाप नहीं
पाप की बात करना पाप है

पाप करने वाले नहीं डरते
पाप की बात करने वाले
डरते हैं !

मत डरिए,
चाहे जितना पाप करें
आप उतना पाप करें
जितना कि किसी का
बाप भी ना कर सके ।

बस, बात ना करें
बातें करना पाप है
सबसे बड़ा पाप ।
***

यात्री
मैं ओर तू
सुपर डीलक्स मोटर के
यात्री जैसे
दिन निकलते ही
पीछे-पीछे भाग रहे हैं
तेरी खिड़की से तू
मेरी खिड़ाकी से मैं
झांक रहे हैं बाहर ।

सुबह
मेरी खिडकी से
ललाई लिए
ऊपर आया था सूरज
अब तुम्हारी खिडकी में
हार-थक कर
उतर रहा है नीचे ।

आ मित्र , आ
सूरज का चढना-उतरना
देखना छोड़, जरा बतियाएं ।

बता, तू कौन है ?
कहां जा रहा है ?
कहां से आया है ?
सांझ का समय हो चला है
मौन तोड़े ।

लेकिन, पहले तू बोल ।
बोलने से ही पता चलेगा
सुपर-डिलक्स बस में
सुपर तू है या फिर मैं
जल्दी से बोल
उजाला कम होता जा रहा है।
***

झुका- झुका सिर
झंडा झुका
मेरा सिर झुक गया ।
हरे राम
बेचारा अच्छा था।
झंडा
तीन-सात-बारह दिन झुका रहा
फिर वापस
ऊंचा हो गया।
मेरा सिर फ़िर झुक गया
घणी-खम्मा,
पधारो,
आपके आने से
बिगड़े
काम बनेंगे
अब तक
बेईमानी थी
भ्रष्टाचार था
चोरी थी
भाई-भतीजा था
अब सुधर जाएगी
देश की हालत
पधारो।

मेरा मन
आज तक नहीं समझा
कि मेरा सिर
झंडे के उतरने
और
चढ़ने पर
झुकता क्यों है ?
***

यात्रा-1
यात्रा का मार्ग
जब-जब भी पूछा
लोगों ने बताया-
अलग-अलग ।
मैं, बिना बताएं ही
इस मजिल तक
आ पहुंचा हूं ।
***

यात्रा-2
भावनाओं को
अर्थ देना, बताना
अर्थ को अक्षर देना
माला फेरना
अक्षर-अक्षर की
फिए चुप-चाप
भीतर ही भीतर चलना ।

यह कैसी यात्रा है ?
तू सोचता है-
मै चल रहा हूं
भाग रहा हूं
जमाने से भी आगे ।

चन्द्रमा कितना ही भागे
धरती से उसका गठबधंन
नहीं टूट सकता…

यह कैसी यात्रा है ?
***

अनुवाद : नीरज दइया


प्रेमजी प्रेम राजस्थानी के वरिष्ठ कवि-गीतकार रहे हैं । मंच की शोभा रहे प्रेमजी प्रेम को म्हारी कविता के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । राजस्थानी में प्रेमजी प्रेम हाड़ौती अंचल के पर्याय रहें और हाड़ौती बोली की महक से समग्र राजस्थानी कविता में अपनी अविस्मरणीय छवि स्थापित कर कम उम्र में संसार को विदा कह गए ।

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